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शरीर का वास्तविक उपयोग || आचार्य प्रशांत, संत कबीर और मुनि अष्टावक्र पर (2014)

2019-11-24 2 Dailymotion

वीडियो जानकारी:<br /><br />शब्दयोग सत्संग<br />२९ अक्टूबर २०१४<br />अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा<br /><br />अध्याय ३,सूत्र ४(अष्टावक्र गीता)<br />श्रुूूत्वापि शुद्धचैतन्य आत्मानमतिसुन्दरं ।<br />उपस्थेऽत्यन्तसंसक्तो मालिन्यमधिगच्छति ||<br />अध्याय ११, सूत्र ६(अष्टावक्र गीता)<br />नाहं देहो न मे देहो बोधोऽहमिति निश्रच्यी ।<br />कैवल्यं इव संप्राप्तो न स्मरत्यकृतं कृतम् ॥<br /><br />दोहा:<br />दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार |<br />तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार || (संत कबीर)<br /><br />प्रसंग:<br />जीवन में शरीर का कितना महत्त्व है?<br />शरीर का वास्तविक उपयोग क्या है?<br />शरीर को पूर्ण उपयोगी कैसे बनाएं?

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